हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के विभिन्न अवतारों का जिक्र किया गया है, जिनमें से ज्यादातर अवतार भगवान विष्णु और शक्ति के रहे हैं। वैसे भगवान शिव के भी विभिन्न अवतारों का उल्लेख कहीं-कहीं मिलता है। आज हम आपको भोलेनाथ के भीषण अवतार, भैरव से अवगत करवाएंगे जिन्हें उनके भक्त अपना रक्षक मानते हैं।
भैरव या भैरो को तांत्रिक और योगियों का इष्ट देव कहते हैं। तंत्र साधक विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भैरो की उपासना करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भैरव, छाया ग्रह राहु के देवता हैं। इसलिए वे लोग जो राहु से मनोवांछित लाभ पाने के इच्छुक होते हैं वे भैरो की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। पौराणिक धार्मिक दस्तावेजों में भैरो को देवी महाविद्या, जिन्हें भैरवी कहा जाता है, के साथ जोड़ा गया है। भैरवी अपने अनुयायियों की शुद्धि करती है, जिससे व्यक्ति के चरित्र, उसके विचार, शरीर, व्यक्तित्व आदि को शुद्धता मिलती है। शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है? इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का जवाब हासिल करने के लिए गए। सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे। ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा “शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं”। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया “यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ है और वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता”। सामवेद ने उत्तर दिया “विभिन्न साधक और योगी जिसकी आराधना करते हैं वही सबसे श्रेष्ठ है और जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है, वो त्र्यंबकम यानि शिव है”। अथर्ववेद ने कहा “भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है, जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त करता है, मनुष्य की सारी चिंताएं हरता है, वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है”। चारों वेदों के उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु और ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा। उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके। ब्रह्मा का कटा सिर अपने हाथ में लेकर भैरव विभिन्न तीर्थ स्थानों में गए, पवित्र नदियों में स्नान किया ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल सके। परंतु उन्होंने देखा कि ब्रह्म हत्या का पाप हर जगह उनका पीछा कर रहा है। लेकिन जैसे ही भैरव काशी पहुंचे, वैसे ही उनका पाप मिट गया। भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए। भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य कथा मौजूद है, जिसका संबंध शिव और शक्ति से है। राजा दक्ष की पुत्री शक्ति मन ही मन शिव को अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन उनके पिता किसी भी रूप में शिव के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए राजी नहीं थे। परंतु शक्ति ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर शिव से विवाह किया, जिससे राजा दक्ष अत्यंत क्रोधित हो उठे। शिव का अपमान करने के उद्देश्य से राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें शिव और शक्ति को आमंत्रित नहीं किया। बिना निमंत्रण के शक्ति यज्ञ में पहुंची जहां राजा दक्ष ने शिव का अपमान किया। इस अपमान से शक्ति बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी। शक्ति के मृत शरीर को देखकर भगवान शिव क्रोध की अग्नि में जल उठे और इसी आवेग में उन्होंने दक्ष का सिर काट डाला। भगवान शिव, शक्ति के शव को अपने कांधे पर डालकर पूरे ब्रहमाण्ड का चक्कर लगाने लगे। निराशा और क्रोध के बीच वह अनियंत्रित हो उठे थे। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से शक्ति के शव को टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां शक्ति के धड़ के टुकड़े गिरे, वे शक्तिपीठ बन गए। कहा जाता है आज भी भगवान शिव, भैरव के अवतार में उन शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं। अपने शत्रु पर विजय पाने, भौतिक सुख-सुविधाएं हासिल करने और हर क्षेत्र में सफलता पाने की कामना करने वाले लोग भैरव की उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है भैरव को प्रसन्न करना बहुत आसान है, वह अपने भक्तों की आराधना से बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं। नारियल, काले तिल, फूल, सिंदूर सरसो का तेल भैरव पर अर्पण करना शुभ माना जाता है। काल भैरव की 8 परिक्रमा करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति लगातार 6 महीने तक काल भैरव की उपासना करता है वह विभिन्न सिद्धियों का स्वामी बन जाता है। मार्गशीर्ष माह की अष्टमी पर काल भैरव की उपासना फलदायी मानी जाती है, इसके अलावा रविवार, मंगलवार, अष्टमी और चतुर्दशी को भी भैरव की आराधना करने का प्रावधान है।
भैरव या भैरो को तांत्रिक और योगियों का इष्ट देव कहते हैं। तंत्र साधक विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भैरो की उपासना करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भैरव, छाया ग्रह राहु के देवता हैं। इसलिए वे लोग जो राहु से मनोवांछित लाभ पाने के इच्छुक होते हैं वे भैरो की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। पौराणिक धार्मिक दस्तावेजों में भैरो को देवी महाविद्या, जिन्हें भैरवी कहा जाता है, के साथ जोड़ा गया है। भैरवी अपने अनुयायियों की शुद्धि करती है, जिससे व्यक्ति के चरित्र, उसके विचार, शरीर, व्यक्तित्व आदि को शुद्धता मिलती है। शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है? इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का जवाब हासिल करने के लिए गए। सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे। ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा “शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं”। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया “यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ है और वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता”। सामवेद ने उत्तर दिया “विभिन्न साधक और योगी जिसकी आराधना करते हैं वही सबसे श्रेष्ठ है और जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है, वो त्र्यंबकम यानि शिव है”। अथर्ववेद ने कहा “भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है, जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त करता है, मनुष्य की सारी चिंताएं हरता है, वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है”। चारों वेदों के उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु और ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा। उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके। ब्रह्मा का कटा सिर अपने हाथ में लेकर भैरव विभिन्न तीर्थ स्थानों में गए, पवित्र नदियों में स्नान किया ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल सके। परंतु उन्होंने देखा कि ब्रह्म हत्या का पाप हर जगह उनका पीछा कर रहा है। लेकिन जैसे ही भैरव काशी पहुंचे, वैसे ही उनका पाप मिट गया। भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए। भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य कथा मौजूद है, जिसका संबंध शिव और शक्ति से है। राजा दक्ष की पुत्री शक्ति मन ही मन शिव को अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन उनके पिता किसी भी रूप में शिव के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए राजी नहीं थे। परंतु शक्ति ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर शिव से विवाह किया, जिससे राजा दक्ष अत्यंत क्रोधित हो उठे। शिव का अपमान करने के उद्देश्य से राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें शिव और शक्ति को आमंत्रित नहीं किया। बिना निमंत्रण के शक्ति यज्ञ में पहुंची जहां राजा दक्ष ने शिव का अपमान किया। इस अपमान से शक्ति बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी। शक्ति के मृत शरीर को देखकर भगवान शिव क्रोध की अग्नि में जल उठे और इसी आवेग में उन्होंने दक्ष का सिर काट डाला। भगवान शिव, शक्ति के शव को अपने कांधे पर डालकर पूरे ब्रहमाण्ड का चक्कर लगाने लगे। निराशा और क्रोध के बीच वह अनियंत्रित हो उठे थे। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से शक्ति के शव को टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां शक्ति के धड़ के टुकड़े गिरे, वे शक्तिपीठ बन गए। कहा जाता है आज भी भगवान शिव, भैरव के अवतार में उन शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं। अपने शत्रु पर विजय पाने, भौतिक सुख-सुविधाएं हासिल करने और हर क्षेत्र में सफलता पाने की कामना करने वाले लोग भैरव की उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है भैरव को प्रसन्न करना बहुत आसान है, वह अपने भक्तों की आराधना से बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं। नारियल, काले तिल, फूल, सिंदूर सरसो का तेल भैरव पर अर्पण करना शुभ माना जाता है। काल भैरव की 8 परिक्रमा करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति लगातार 6 महीने तक काल भैरव की उपासना करता है वह विभिन्न सिद्धियों का स्वामी बन जाता है। मार्गशीर्ष माह की अष्टमी पर काल भैरव की उपासना फलदायी मानी जाती है, इसके अलावा रविवार, मंगलवार, अष्टमी और चतुर्दशी को भी भैरव की आराधना करने का प्रावधान है।