हाथ से खाने के पीछे छिपे हैं कई वैज्ञानिक पहलू

एक दौर था जब हाथ से भोजन करना एक सामान्य परंपरा थी। वैसे बंगाल समेत दक्षिण भारत के वो राज्य जो आज भी अपनी संस्कृति के नजदीक हैं, छुरी-कांटे या चम्मच की सहायता के बगैर हाथ से ही भोजन करते हैं लेकिन विस्तृत परिप्रेक्ष्य में उन्हें अनहाइजिनिक माना जाता है। अंग्रेजी रियलिटी टी.वी. शो बिग ब्रदर में एक बार एक भारतीय प्रतिद्वंदी ने हाथ से भोजन क्या कर लिया था, उसके अन्य अंग्रेजी सहभागियों ने पूरे भारत के लोगों की ही हाइजीन पर सवाल उठा दिया था। पश्चिमी सभ्यता के अंतर्गत हाथ से भोजन करना असभ्य होने की निशानी माना जाता है।  लेकिन भारतीय संस्कृति में अन्न को भी देवता का दर्जा दिया गया है, इसलिए हमेशा से ही हाथ से भोजन करना हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। हाथ से भोजन करने के पीछे कई कारण दर्ज हैं। क्या कभी आपने ये सोचा है कि हमारे पूर्वजों ने हमेशा हाथ से भोजन करने को ही तरजीह क्यों दी? क्यों वे लोग खाने की प्रत्येक वस्तु को हाथ से ग्रहण करना ही बेहतर समझते थे? आपको बता दें कि हाथ से भोजन करने की इस परंपरा का उद्भव आयुर्वेद की शिक्षाओं के बाद हुआ था। वैदिक काल से जुड़े लोग ये जानते थे कि मानव शरीर की ऊर्जा हाथों में ही छिपी हुई है। योग और नृत्य में आपने ‘मुद्राओं’ के विषय में जरूर सुना होगा, जो हिन्दू परंपरा का एक अहम हिस्सा हैं। हाथ से खाना खाने का तरीका भी मुद्राओं के अभ्यास से ही उत्पन्न हुआ है। ध्यान और पारंपरिक नृत्यों जैसे भरतनाट्यम में मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है। शास्त्रों में मनुष्य के हाथों को ही शरीर का सबसे मूल्यवान अंग माना गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मनुष्य के हाथों की अंगुलियों के छोर पर देवी लक्ष्मी का वास होता है, मध्य में गोविंद यानि कृष्ण और सबसे नीचे देवी सरस्वती का वास होता है। हमारे हाथों और पैरों को पांचों तत्वों की वाहिका माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हमारी प्रत्येक अंगुली किसी ना किसी विशिष्ट तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। अंगूठे का अर्थ ब्रह्मांड से है, तर्जनी अंगुली वायु, मध्यमा अग्नि, अनामिका अंगुली जल, कनिष्ठिका धरती का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रत्येक अंगुली, भोजन को शरीर में प्रवेश करने से पहले उसे पवित्र करती है उसमें सुधार करती है। जैसे ही अंगुलियों द्वारा खाद्य पदार्थ को छुआ जाता है वैसे ही पांचों तत्वों का प्रभाव भोजन पर पड़ता है और साथ ही अग्नि देव को आमंत्रित किया जाता है ताकि वह भोजन शरीर में भली प्रकार से रिस जाए। इन पांचों तत्वों की ही सहायता से ही व्यक्ति भोजन के टेस्ट के साथ-साथ उसकी महक, उसकी संरचना आदि का भी आनंद लेता है।  आपने अपने घर में यह भी देखा होगा कि परिवार के बड़े सदस्य जब भी खाना बनाने रसोई में जाते हैं तो मसालों का हिसाब-किताब वह अपनी अंगुलियों पर ही कर लेते हैं। बिना किसी चम्मच की सहायता के सिर्फ अंदाजे से ही वे सब्जी में मसाले डाल लेते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रकृति ने आपके हाथों की रचना ही कुछ इस प्रकार की है कि कुछ भी सीमित और जरूरी मात्रा में ही हमारे शरीर में जाए। यह तो मात्र एक ऐसा उदाहरण है, जो यह साबित करने के लिए काफी है कि हिन्दू परंपरा में कई ऐसी चीजें शामिल हैं जो पहली नजर में तो बिल्कुल सामान्य या फिर अजीब लगेंगी लेकिन इनके पीछे छिपे गहरे शास्त्र को समझने के लिए हिन्दू परंपरा में दिलचस्पी और धैर्य होना बहुत आवश्यक है।