एक भविष्यवाणी से हुई थी युवराज की रहस्यमय मौत


कई बार हमारे मुख से जाने-अनजाने में कही गई बातें आने वाले भविष्य में सच हो जाती हैं। इसे हम मात्र एक संयोग समझ सकते हैं। लेकिन एक विद्वान द्वारा जांच-पड़ताल कर समझी हुई भविष्य की जानकारी देना तो संयोग नहीं हो सकता। कुछ ऐसे ही बात का उदाहरण देती है ‘वराह मिहिर’ के जीवन से जुड़ी एक कहानी।  वराह मिहिर ईसा की पांचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। उनके पिता का नाम आदित्यदास था, जो सूर्य भगवान के भक्त थे। वराह मिहिर ने अपने पिता से ज्योतिष विद्या का ज्ञान हासिल किया था। जीवन भर कड़े परिश्रम से उन्होंने गणित, भूगोल व ज्योतिष ज्ञान में पूर्णता हासिल की। उनके इस पराक्रम का पता जब विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त द्वितीय को लगा, तो राजा ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। वह अपने राज्य एवं प्रजा संबंधित हर अच्छे-बुरे कार्यों में वराह मिहिर की सलाह जरूर लेते थे। लेकिन रोचक तथ्य यह है कि वराह मिहिर का नाम पहले केवल ‘मिहिर’ था, जिसे बाद में राजा द्वारा ही वराह मिहिर कर दिया गया। वराह मिहिर के नाम बदले जाने के पीछे एक बेहद रोचक कहानी है। यही कहानी वराह मिहिर के जीवन में ज्योतिष ज्ञान को हासिल करने के बाद एक बड़ी परीक्षा के रूप में उभर कर आई। राजा विक्रमादित्य के महल में नौ रत्नों में से एक रत्न कहलाने वाले वराह मिहिर को राजा द्वारा बेहद सम्मान हासिल था।  राजा अपने राज्य के साथ अपने निजी मामलों में भी वराह मिहिर की सलाह लेना उचित समझते थे। एक बार राजा के यहां पुत्र ने जन्म लिया। पुत्र के जन्म होते ही राजा ने राज दरबार में वराह मिहिर को बुलाने का आदेश दिया। वराह मिहिर के उपस्थित होने पर राज ने उनसे अपने पुत्र के भविष्य का हाल बताने के लिए आग्रह किया। आज्ञानुसार वराह मिहिर राजा के नवजात शिशु की जन्म कुंडली बनाने में लग गए। वह कितना गुणवान होगा, कितना ज्ञान हासिल करेगा और उसकी उम्र क्या होगी, इन सभी बिंदुओं पर वराह मिहिर ने ध्यानपूर्वक काम किया। परन्तु अंत में जिस निष्कर्ष के साथ वराह मिहिर राजा के सामने आए, वह चौंकाने वाला था।  वराह मिहिर राजा के दरबार में हाज़िर हुआ। उसने यह बताया कि आपके पुत्र की आयु काफी छोटी है। वह जब 18 वर्ष का होगा तो एक वराह (जंगली सुअर) द्वारा मार दिया जाएगा। यह सुन मानो राजा की सांस वहीं की वहीं अटक-सी गई हो। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उनके कुल का दीपक एक दिन बुझ जाएगा। वराह मिहिर द्वारा की गई इस भविष्यवाणी से राजा चौकन्ने हो गए। उन्होंने अपने मंत्री को बुलाकर अपने पुत्र के लिए कड़ी रक्षा का इंतज़ाम करने का आदेश दिया। उनके पुत्र के आसपास कोई परिंदा भी पर ना मार सके, इतनी सख्त सुरक्षा देने के आदेश दिए गए। सुरक्षा तो दे दी गई लेकिन फिर भी राजा के मन में वराह मिहिर द्वारा की गई भविष्यवाणी खटक रही थी। वे वराह मिहिर के पराक्रम को खूब समझते थे और जानते थे कि वराह मिहिर का ज्ञान कितना महान है। उनके मन में एक ही बात चल रही थी कि हो ना हो एक दिन वराह मिहिर की भविष्यवाणी सच हो सकती है। चिंता की इस भावना के साथ धीरे-धीरे दिन गुजरते गए। दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते गए। कुछ इसी तरह से आखिरकार राजा के पुत्र की आयु 18 वर्ष की हो गई। वराह मिहिर द्वारा राजकुमार के मृत्यु का समय भी घोषित किया गया था। वराह मिहिर के अनुसार शाम 5 बजे एक जंगली वराह द्वारा राजा के पुत्र पर वार किया जाएगा जिससे उसकी मौत हो जाएगी। अब राजा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। दरबार में मौजूद किसी व्यक्ति ने सलाह दी कि ‘राजा साहब, आपके पुत्र की मृत्यु तो तब होगी ना जब महल के भीतर कोई जंगली वराह दाखिल हो सकेगा।  यदि सुरक्षा को और बढ़ा दिया जाए और राजकुमार को बेहद सुरक्षित स्थान पर ठहराया जाए तो वराह मिहिर की भविष्यवाणी गलत साबित हो सकती है’। राजा को वराह मिहिर के वचनों पर विश्वास तो था लेकिन पुत्र के मोह में वे अंधे हो चले थे। इसीलिए उन्होंने सबके सामने एक घोषणा की। वह बोले कि यदि किन्हीं कारणों से वराह मिहिर द्वारा की गई भविष्यवाणी सही निकली तो वह उसे राज्य के बड़े तख्त पर बैठा देंगे और उसे स्वयं मिहिर से ‘वराह मिहिर’ की उपाधि देकर सम्मानित करेंगे।  उन्होंने राजकुमार के बचाव में सभी सैनिकों एवं अपनी खास मंत्रियों को काम पर लगा दिया। राजकुमार को एक सुरक्षित इमारत में ठहराया गया। इस इमारत की चारों ओर की सीमा के बाहर एवं अंदर भी सैनिकों को तैनात किया गया। सुरक्षा इतने पुख्ते अंदाज़ से की गई कि शायद एक चूहा भी अंदर नहीं जा सकता था। इसके अलावा राजकुमार को इमारत के सातवें माले पर ठहराया गया और साथ ही यह आदेश भी दिए गए कि वह बिना राजा की आज्ञा के वहां से नीचे नहीं आ सकते। इतनी निपुण व्यवस्था के बाद राजा को अब यह भरोसा हो रहा था कि उनके पुत्र के जीवन पर कोई आंच नहीं आएगी। अब सभी वराह मिहिर द्वारा की गई भविष्यवाणी पर शक़ करने लगे थे। उसके द्वारा राजकुमार की मृत्यु के लिए जिस दिन और समय की गणना की गई थी, उसी दिन राजा ने राज दरबार में सब को बुलाया। भविष्यवाणी के अनुसार राजकुमार की मृत्यु शाम 5 बजे होनी थी। राजा द्वारा ठीक 2 बजे राज दरबार आयोजित करने क आदेश दिए गए। दरबार में उपस्थित सबकी नज़रें वराह मिहिर पर टिकी हुई थीं। सब चाहते थे कि सुरक्षा इंतज़ामों को देखते हुए वराह मिहिर अपनी भविष्यवाणी को गलत करार दें और सबसे माफी मांगें। वराह मिहिर को सबकी भावनाओं का अंदाज़ा होने लगा था। इसीलिए वह उठा और भरे दरबार में अपनी बात रखने लगा। वह बोला, “दुनिया में आज तक जितने भी महान ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया वह भी राजकुमार के ऊपर मंडरा रहे मौत के साए को हटा नहीं सकते, तो फिर यह तुच्छ सैनिक क्या कर लेंगे।“ वह आगे बोला, “यदि मेरे द्वारा की गई भविष्यवाणी गलत निकली तो मैं भविष्य में कभी भी किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं करूंगा। मैं संसार के सभी सुख त्याग कर वन में चला जाऊंगा और अंतिम सांस तक तप करूंगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरी की गई भविष्यवाणी जरूर सच होगी।“ यह कहकर वराह मिहिर अपने स्थान पर शांति से बैठ गया। उसकी बात का राजा पर गहरा असर हुआ। उसने सभी मंत्रियों को तुरंत ही उस इमारत का जायज़ा करने को कहा जहां राजकुमार अपने मित्रों के साथ ठहरे थे। हर आधे घंटे के बाद मंत्रियों द्वारा राजा को राजकुमार के सुरक्षित होने की खबर दी जाती थी। इससे राजा को यह विश्वास होने लगा कि वराह मिहिर की भविष्यवाणी गलत ही साबित होगी। अब शाम के 6 बज चुके थे और अब भी मंत्रियों ने राजकुमार के जीवित एवं सुरक्षित होने की खबर राजा को दे दी थी। यह सुन कर राजा को अपने सैनिकों एवं तमाम प्रबंधों पर गर्व महसूस हुआ। राजा ने दरबार में वराह मिहिर के साथ अन्य सभी खास हस्तियों को बुलाया।  तब राजा वराह मिहिर से बोले कि देखो मेरा पुत्र अभी भी जीवित है, आखिरकार तुम्हारी कही बात खारिज हुई। तब वराह मिहिर धीमे से मुस्कुराए और बोले, “ हे राजन! आपके पुत्र की मौत तो मेरे द्वारा बताए गए निर्धारित समय यानी कि 5 बजे हो चुकी है। जरूर आपके मंत्रियों द्वारा जांच-पड़ताल में कोई भूल चूक हुई है।“ यह सुनते ही राजा क्रोधित हो उठे और बोले, “ऐसा नहीं हो सकता। मुझे अपने पुत्र के जीवित होने की पल-पल खबर दी गई है। और तुम कहते हो कि वह मर गया? मैं नहीं मानता।“ इस पर वराह मिहिर ने जवाब दिया, “राजन, यदि आपको मेरी बत पर विश्वास नहीं हो रहा तो आप उस इमारत में जाकर खुद देख लीजिए। आपका पुत्र आपको खून में लथपथ और मृत मिलेगा।“

इतना सुनते ही राजा के शरीर में मानो कंपकपी सी दौड़ पड़ी। वे व्यवस्था में मौजूद मंत्रियों एवं वराह मिहिर के साथ अपने पुत्र को देखने चल पड़े। बीच रास्ते में जाते हुए प्रत्येक सैनिक से जब राजकुमार के बारे में पूछा गया तो सभी ने कहा कि वह ठीक हैं और सातवीं इमारत पर अपने मित्रों के साथ बैठे हैं।  लेकिन पिता का मन फिर भी पुत्र को अपनी आंखों से देखना चाहता था। राजा आगे बढ़े और उस स्थान पर पहुंचे जहां राजकुमार और उनके मित्र ताश खेल रहे थे। लेकिन वहां राजकुमार उपस्थित नहीं थे। किसी एक मित्र ने बताया कि राजकुमार कुछ परेशान सा महसूस कर रहे थे, इसलिए वह इमारत के छज्जे पर ठंडी हवा का आनंद लेने गए थे, लेकिन काफी देर बाद भी वापस नहीं लौटे।  यह सुन राजा फटाफट छज्जे की ओर भागे, वहां पहुंचकर उन्होंने जो देखा वह चौंकाने वाला था। राजकुमार खून से लथपथ एक शयन पर गिरे पड़े थे और उनके प्राण लेने वाला कोई और नहीं बल्कि महल का ही राजसी चिन्ह दर्शाता एक डंडा था जिस पर एक जंगली वराह बना हुआ था।  आखिरकार वराह मिहिर की भविष्यवाणी सच हुई। फिर चाहे वह एक जीवित वराह था या नकली, अंत में राजकुमार की मृत्यु एक वराह के वार से ही हुई। यह दृश्य देख सभी हैरान थे कि आखिरकार यह सब कैसे हुआ होगा।  दरअसल अपने मित्रों के साथ ताश खेल रहे राजकुमार को अचानक सीने में घुटन-सी महसूस होने लगी। उन्होंने अपने ताश के पत्ते पास बैठे मित्र को पकड़ाए और खुली हवा में जाने का निश्चय किया। छज्जे पर उनके आराम के लिए हमेशा एक गद्देदार पलंग बिछा होता था। वह उस पलंग पर लेट गए, उनका मुख ऊपर की ओर ही था। अचानक ठीक 5 बजे ज़ोरदार हवा चली जिसके कारण छज्जे के किनारे लगा वह डंडा अचानक राजकुमार पर ज़ोर से आ गिरा। उस डंडे पर लगे नकली वराह ने राजकुमार के सीने, पेट और सिर पर प्रहार किया। राजकुमार पलभर में खून से लथपथ हो गए और मौके पर अपने प्राण त्याग दिए। हवा के ज़ोर से शायद उनकी चीखें भी कोई सुन ना सका।