द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जब विंस्टन चर्चिल व्हाइट हाउस में दाखिल हुए तो उनके साथ कुछ ऐसा हुआ,

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जब विंस्टन चर्चिल व्हाइट हाउस में दाखिल हुए तो उनके साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसने उन्हें हिलाकर रख दिया। यह बात काफी चर्चित है कि व्हाइट हाउस में अब्राहम लिंकन की आत्मा का वास है। विंस्टन का जब उस आत्मा से साक्षात्कार हुआ तो उनका यह अनुभव बहुत अजीब था। शराब और सिगरेट का नशा करने के बाद जब चर्चिल अपने बेडरूम में गए तो वहां उन्हें अब्राहम लिंकन की आत्मा दिखी। चर्चिल का कहना था कि उन्होंने लिंकन को गुड इवनिंग कहा, इसके बाद लिंकन थोड़ा मुस्कुराए और फिर वहां से गायब हो गए।
स्कॉटलैंड के रहने वाले लेखक और चिकित्सक, आर्थर कोनन डोयल के अनुसार वह अलग-अलग माध्यमों द्वारा पारलौकिक ताकतों से बात कर सकते थे। जबकि ब्रिटेन के महान गणितज्ञ, कंप्यूटर वैज्ञानिक और तर्कशात्री एलन ट्यूरिंग टेलिपैथी जैसी विद्या में विश्वास करते थे। जिन तीन लोगों का जिक्र यहां किया गया है वे अपने-अपने क्षेत्र के महान लोग रहे हैं, अत्याधिक बुद्धिमान, तार्किक और सूझबूझ रखने वाले लोग। लेकिन फिर भी ये तीनों पारलौकिक या पैरानॉर्मल बातों पर विश्वास रखते थे। आज के दौर में जब विज्ञान की पहुंच सामान्य जन-जीवन तक है, फिर भी लोगों का पारलौकिक शक्तियों पर यकीन करना थोड़ा हास्यास्पद लगता है। ऐसा क्या कारण है जो इंसानी मस्तिष्क भूत-प्रेत, आत्माओं या बुरी शक्तियों जैसी बातों को सच मान बैठता है?  मनोवैज्ञानिकों ने इंसानी मस्तिष्क में होने वाली इन हलचलों की खूब पड़ताल की और यह जानने की कोशिश की कि ऐसा क्यों है जहां कुछ लोग आत्माओं के कॉंसेप्ट पर विश्वास करते हैं तो कुछ उन्हें देखने का भी दम भरते हैं।  मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों में पाया कि जो व्यक्ति पारिवारिक जन-जीवन के काफी नजदीक होता है या इस सब्जेक्ट पर काफी ध्यान देता है तो उसे अपने आसपास बुरी शक्तियों का अनुभव होने लगता है। उसके दिमाग का एक भाग पैरानॉर्मल एक्टिविटीज पर केन्द्रित हो जाता है और उसे यह विश्वास दिलाने की कोशिश करने लगता है कि जो वह सोच रहा है वो सच है। परछाइयों को अपने आसपास देखने का दावा करने वाले लोग भी दिमागी तौर पर मजबूत नहीं होते। आउट ऑफ बॉडी यानि आत्मा का शरीर छोड़कर बाहर निकलने जैसे दृश्य को अनुभव करने को भी वैज्ञानिकों ने तंत्रिका संबंधी घटना करार दिया है। उदाहरण के तौर पर एक बार एक इटली के रहने वाले एक मनोवैज्ञानिक ने जब सुबह-सुबह अपना चेहरा शीशे में देखा तो उसे अपने चेहरे की जगह एक वृद्ध की शक्ल नजर आई। इस घटना के बाद उसने इस विषय में पड़ताल कर यह जाना कि कम रोशनी में अपना चेहरा देखने की वजह से इसे बेहद सामान्य अनुभव कहा जा सकता है।  शराब का अत्याधिक सेवन करना, ड्रग्स लेना या किसी अन्य प्रकार का नशा करने वाले व्यक्ति को कभी-कभार ऐसी गलतफहमियां हो सकती है, जिसकी वजह से वह अपने भ्रम को पारलौकिक अनुभव समझ लेता है।  मनोवैज्ञानिकों का यह भी कहना था कि आपका धर्म, आपके इस अनुभव से जुड़ी बातों से बहुत गहरा संबंध रखता है। इसके अलावा उस संबंधित व्यक्ति के साथ जब कुछ बुरा होता है, मसलन उसके किसी प्रिय की मृत्यु होती है, उसकी जॉब का नुकसान होता है या कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो उसका ध्यान अपने आप ही बुरी शक्तियों के होने पर केन्द्रित हो जाता है।   धीरे-धीरे उसका मस्तिष्क ना सिर्फ इन बुरी शक्तियों के होने पर विश्वास करने लगता है बल्कि उनके आसपास होने जैसी बात पर भी भरोसा कर लेता है। टेक्सास यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि खौफनाक चेहरों को अपने करीब देखना या कुछ डरावने चेहरों को देखने का अनुभव करना मस्तिष्क की एक गड़बड़ी है जो व्यक्ति के भीतर छिपे डर को बाहर निकालती है। धार्मिक किताबों या कहानियों में कुछ ऐसे पात्रों को दर्शाया जाता है जो देखने में काफी भयानक हैं। जो व्यक्ति अपने धर्म से ज्यादा करीब होता है वह ऐसे इन्हीं चेहरों को अपने मस्तिष्क में बैठा लेता है।
जब भी वह किसी नकारात्मक हालात में फंसता है, वह इन आकृतियों को अपने निकट महसूस करता है और इन्हीं को उन हालातों का जिम्मेदार मान लेता है।  एम्स्टरडैम यूनिवर्सिटी के अध्ययनकर्ताओं ने शोध के जरिए यह प्रमाणित किया है कि पारलौकिक शक्तियों पर विश्वास करने वाले लोग इस बात पर भरोसा करते हैं कि उनका वहम सच है। कम या ज्यादा रोशनी की वजह से अगर वह कुछ असामान्य सी आकृति देख लेते हैं तो वे उनको उसे भूत-प्रेत से जोड़ लेते हैं।  भूत-प्रेत या आत्माएं आपके मस्तिष्क का बहुत ही बचकाना सा डर हैं। इस डर का निर्माण भी आपका दिमाग ही करता है और आपका दिमाग ही आपको इससे डरने के लिए भी कहता है। इसे आप अपने दिमाग का केमिकल लोचा भी कह सकते हैं।